एक light-emitting diode two-lead semiconductor light source होती है. ये एक p–n junction diode होती है जो की activate हो जाने पर light emit करती है. जब उसके leads को एक suitable voltage apply किया जाता है तब उसमें स्तिथ electrons device में स्तिथ electron holes के साथ recombine हो जाते हैं. जिससे वो energy release करते हैं photons के form में. इस effect को electroluminescence कहते हैं और यहाँ पर light का जो color होता है (जो की Photon के energy को correspond करती है) इसे determine किया जाता है semiconductor के energy band gap के द्वारा.
LED की पूरी Working Principle detail में
LEDs जो material का इस्तमाल होता है वो basically aluminum-gallium-arsenide (AlGaAs) होती है. ये अपने original state, में इस material के atoms बहुत ही strongly bonded होते हैं. यहाँ free electrons, के न होने से electricity की conduction हो पाना नामुमकिन होता है.
यहाँ पर एक impurity को add किया जा सकता है जिसे की doping भी कहा जाता है, जहाँ की extra atoms को introduced किया जाता है, जिससे की Material का balance disturb हो जाता है. इन impurities को add करने से जो की additional atoms के form में होता है वो either provide करते हैं free electrons (N-type) system में या already स्तिथ existing electrons को निकल देते हैं इन atoms (P-Type) से जिससे atomic orbits से “holes” create होते हैं. इन दोनों तरीकों में materials बहुत ही conductive हो जाते हैं. यहाँ electric current के influence में N-type of material में electrons सक्षम होते हैं travel होने में anode (positive) से cathode (negative) तक जाने में और vice versa होता है P-type of material में. Semiconductor property के अनुसार current कभी भी उलटे directions में travel नहीं करती हैं इन respective cases में.
यहाँ ऊपर वाले explanation के अनुसार, ये बात पूरी तरह से clear होती है की Source LED से कितनी intensity से light emit होगी वो depend करती है emitted photon की energy level कितनी है और जो depend करती है कितनी energy release होती है जब electrons jump करती है semiconductor material के atomic orbits के भीतर.
जैसे की हम जानते हैं की electron को lower orbital से higher orbital तक ले जाने के लिए उसके energy level को बढाया किया जाता है. ठीक उसी तरह से अगर electron को higher orbital से lower orbital तक ले जाने के लिए उसके energy level को कम किया जाता है.
और LEDs में ये phenomena को सही रूप से इस्तमाल किया जाता है. P-type doping में LEDs के electrons move करते हैं higher orbitals से lower orbitals में जाकर, वो भी अपने energy को release करके जो की photons के form में होता है जो की है light. Orbitals जो की एक दुसरे से जितने दूर रहते हैं उतनी ही ज्यादा intensity से light emit होते हैं. इस process में अलग अलग wavelength के हिसाब से अलग colors produce होते हैं LEDs में. इसलिए device से किस तरह की light emit होगी वो depend करती है की किस type की semiconductor material का इस्तमाल किया जाता है.
Infrared light को produce किया जाता है Gallium Arsenide (GaAs) को semiconductor के हिसाब से इस्तमाल करने से. Red और yellow light को produce किया जाता है Gallium-Arsenide-Phosphorus (GaAsP) को semiconductor के हिसाब से इस्तमाल करने से. Red और green light को produce किया जाता है Gallium-Phosphorus (GaP) को semiconductor के हिसाब से इस्तमाल करने से. कुछ ADVANTAGES होते हैं वो मैं आपको अगली पोस्ट मैं बताऊंगा NEXT PART MAIN.
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